Sunday, November 7, 2010

Sanskrit language is mother of Hindi as flashed on the f.b. on Nov.7,2010.

'संस्कृत है हिन्दी की जननी'

.by Manoj Chaturvedi on Sunday, November 7, 2010
मेरे परमप्रिय स्नेही मित्रों प्रस्तुत आलेख में मैंने अपनी सन १९७७ इसवी में प्रकाशित पुस्तक "हिंदी का इतिहास' से कुछ प्रसंग लिए हैं, यह बताना भी ज़रूरी है कि इस आलेख को यहाँ रचित करने के लिए मेरे प्रिय मित्र श्री.लोवी भारद्वाज द्वारा प्राप्त हुयी है,उनके प्रति विनम्र आभार.....! संभवत: आप में कई मित्र मुझसे सहमत नहीं हों, उनसे यही कहूँगा कि मेरी अल्पबुद्धि ने जितना मुझे विश्लेषण का अवसर प्रदान किया, उतना ही मैं आपके समक्ष रखने में समर्थ हो सका !



संस्कृत मां, हिन्दी गृहिणी और अंग्रेजी नौकरानी है, ऐसा कथन डॉ. फादर कामिल बुल्के का है जो संस्कृत और हिन्दी की श्रेष्ठता को बताने के लिए सम्पूर्ण है। मगर आज हमारे देश मे देवभाषा और राष्ट्रभाषा की दिनो दिन दुर्गती होती जा रही है। या यूं कह ले की आज के समय मे मां और गृहिणी पर नौकरानी का प्रभाव बढता चला जा रहा है तो गलत नही होगा !



संस्कृत विश्व की सभी भाषाओं की जननी है। आज विश्व में 35 हजार भाषा परिवार हैं। उनमें नियंत्रण रखने वाला संस्कृत वाग्मय है।हम सब यह जानते हैं कि कोई भी भाषा एक आदमी द्वारा बनाई नहीं जा सकती। भाषा का निर्माण या विकास धीरे-धीरे समाज में आपस में बोलचाल से होता है। समय के साथ-साथ भाषा बदलती रहती है, इसलिए एक भाषा से दूसरी भाषा बन जाती है।



हिन्दी भाषा का उद्भव एवं विकास में उसकी पूर्ववर्ती भाषाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान है।जब भारत ‘जगद्गुरु’ की संज्ञा से अभिहित था, इस समय वैदिक संस्कृत बोली जाती थी। जो आदिकाल से ईसा पूर्व पाँचवीं शती तक प्रयुक्त होती रही। समय के साथ वैदिक संस्कृति ही संशोधन प्राप्त कर (व्याकरण के नियमों से सँवर कर) संस्कृत बनी और 500 ई. पूर्व से 100 ई. तक चलती रही।संस्कृत के बाद पहली प्राकृत या पाली आ गई। यह गौतमबुद्ध के समय बोली जाती थी, जो 500 ई. पूर्व से 100 ई. तक रही।



इसके बाद दूसरी प्राकृत आ गई। जो पाँच नामों से जानी जाती थी-



(1) महाराष्ट्री; (2) शौरसेनी; (3) मागधी; (4) अर्द्धमागधी; (5) पैशाची।



इनका प्रचलन 100 ई. से 500 ई. तक रहा।इसी दूसरी प्राकृत से नई भाषा पनपी जिसे ‘अपभ्रंश’ कहा जाता है। जिसके तीन रूप थे-



(1) नागर; (2) ब्राचड़; (3) उपनागर।



इस अपभ्रंश से कई भाषाएँ विकसित हुईं। जैसे-हिन्दी, बांग्ला, गुजराती, मराठी, पंजाबी आदि।



यदि हम गुजराती, मराठी आदि भाषाओं को एक-दूसरे की बहन कह दें तो अनुचित न होगा क्योंकि ‘अपभ्रंश’ इनकी जननी है।जिस प्रकार भारत में कई प्रांत के कई जिले हैं, उसी प्रकार हिन्दी भाषा में कई उपभाषाएँ हैं।इनमें ब्रजभाषा, अवधी, डिंगल या राजस्थानी, बुंदेलखण्डी, खड़ी बोली, मैथिली भाषा आदि का नाम उल्लेखनीय है।



इन सभी भाषाओं के साहित्य को हिन्दी का साहित्य माना जाता है क्योंकि ये भाषाएँ हिन्दी साहित्य के इतिहास में ‘अपभ्रंश’ काल से उन समस्त रचनाओं का अध्ययन किया जाता है उपर्युक्त उपभाषाओं में से भी लिखी हो ! समाज में उभरने वाली हर सामाजिक, राजनीतिक, साम्प्रदायिक, धार्मिक, सांस्कृतिक स्थितियों का प्रभाव साहित्य पर पड़ता है। जनता की भावनाएँ बहुत कुछ राजनीतिक, सामाजिक, साम्प्रदायिक तथा धार्मिक परिस्थितियों से प्रभावित होती हैं। इसलिए साहित्य सामाजिक जीवन का दर्पण कहा गया है। इस प्रकार यह बात उभर कर आती है कि साहित्य का इतिहास मात्र आँकड़े या नामवली नहीं होती अपितु उसमें जीवन के विकास-क्रम का अध्ययन होता है। मानव-सभ्यता-संस्कृति और उसके क्रमिक विकास को जानने का मुख्य साधन साहित्य ही होता है। साहित्य समाज का दर्पण होता है, इसलिए उसमें मानव-मन के चिन्तन-मनन, भावना और उसके विकास का रूप प्रतिबिम्बित रहता है। अत: किसी भी भाषा के साहित्य का अध्ययन करने और उसके प्रेरणास्रोत्रों को जानने के लिए उसकी पूर्व-परम्पराओं और प्रवृत्तियों का ज्ञान आवश्यक है।हिन्दी भाषा के उद्भव-विकास में उसकी पूर्ववर्ती भाषाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-



वैदिक संस्कृत:-



जिस समय हमारा देश जगद्गुरु की संज्ञा से अभिहित था, वैदिक संस्कृत ही भारतीय आर्यों के विचारों की अभिव्यक्ति करती थी। प्राय: यह आदि काल से ईसा पूर्व पाँचवीं शती तक प्रयोग में लायी जाती रही।संस्कृत- वैदिक संस्कृत ही समय के साथ संस्कार एवं संशोधन प्राप्त कर, व्याकरण के नियमों से सुसज्जित होकर संस्कृत भाषा बन गई। ईसा से लगभग छ: शताब्दी पूर्व महर्षि पाणिनी की ‘अष्टाध्यायी’ के निर्माण के साथ ही संस्कृत में एकरूपता आ गई। यह भाषा 500 ई. पूर्व से 1000 ई. तक चलती रही।पहली प्राकृत या पाली-संस्कृति साहित्य में व्याकरण के प्रवेश ने जहाँ एक ओर उसे परिमार्जित कर शिक्षितों की व्यवहारिक भाषा के पद पर प्रतिष्ठित किया वहाँ दूसरी ओर उसे जनसाधारण की पहुँच के बाहर कर दिया। ऐसे समय में लोक भाषा के रूप में मागधी पनप रही थी, जिसका व्यवहार बौद्ध लोग अपने सिद्धान्त के प्रचारार्थ कर रहे थे। इसी को पोली कहकर संबोधित किया गया।



अशोक के शिलालेखों पर ब्राह्मी और खरोष्ठी नामक दो लिपियाँ मिलती हैं। इसी को कतिपय भाषा वैज्ञानिक पहली प्राकृत कहकर पुकारते हैं इस भाषा का काल 500 ई. पूर्व से 100 ई. पूर्व तक निश्चित किया है।



दूसरी प्राकृत-पहली प्राकृत साहित्यकारों के सम्पर्क में आते ही दूसरी प्राकृत बन बैठी और उसका प्रचलन होने लगा। विभिन्न अंचलों में वह भिन्न-भिन्न नामों से पुकारी गई। इस प्रकार इसके पाँच भेद हुए-



(1.)महाराष्ट्री-मराठी



(2.)शौरसेनी-पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी, पहाड़ी, गुजराती



(3.)मागधी-बिहारी, मागधी, उड़िया, असमिया



(4.)अर्द्ध मागधी-पूर्वी हिन्दी



(5.)पैशाची-लहंदा, पंजाबी



इस प्रकार क्रमश: लोकवाणी, प्रचलित बोलियों एवं साहित्यिक भाषा के विकास क्रम ने प्राचीन हिन्दी को जन्म दिया जो खड़ी बोली हिन्दी की जननी है। यही ‘प्राचीन हिन्दी’ या ‘हिन्दवी’ अपभ्रंश और आधुनिक खड़ी बोली के मिलनरेखा के मध्य-बिन्दु को निर्धारित करती है। हिन्दी-साहित्य में इतिहास लिखना कब और कैसे प्रारम्भ हुआ, यह विचारणीय प्रसंग है। इतिहास लिखने वालों की दृष्टि अपने आप चौरासी वैष्णव की वार्ता और भक्तकाल की ओर खिंच जाती है परन्तु तथ्यों और खोजबीन से यह पता चलता है कि इसका श्रीगणेश पाश्चात्य साहित्य के प्रभाव से ठाकुर शिवसिंह सेंगर (सन् 1883 ई.) द्वारा लिखित ‘कवियों के एक वृत्त संग्रह’ के द्वारा हुआ।संस्कृत आज विज्ञान की भाषा बन गई है। वैज्ञानिक इस पर कई रिसर्च कर रहे हैं ।



हिंदी और उर्दू दो अलग भाषायें हैं पर बोली होने की वजह से एक जैसी लगती हैं। यह भाषायें इस तरह आपस में मिली हुईं है कि कोई उर्दू बोलता है तो लगता है कि हिंदी बोल रहा है और उसी तरह हिंदीबोलने वाला उर्दू बोलता नजर आता है। दोनों के बीच शब्दों का विनिमय हुआ है और हिंदी में उर्दू शब्दों के प्रयोग करते वक्त नुक्ता लगाने पर विवाद भी चलता रहा है। बोली की साम्यता के बावजूद दोनोंकी प्रवृत्ति अलग अलग है।



संस्कृत भाषा का क्षेत्र व्यापक है। सभी क्षेत्रों में विस्तृत जानकारी मिलती है। संस्कृत भाषा के शब्द कोष में हर समस्या का समाधान है। ऐसा शब्द कोष किसी भी भाषा का नहीं है। इससे नित्य नए शब्द बनाए जा सकते है। संस्कृत भूत, भविष्य और वर्तमान काल में भी समाप्त नहीं हो सकती। पाश्चातय सभ्यता के कारण इसके उपयोग में कमी आई है। जनसाधारण के बोलचाल में उपयोग नहीं आने के कारण बोलने में कुछ कठिनाई आती है। जबकि संस्कृत भाषा सरल, सुबोध, सुग्मय है। इसे रुचिकर बोलने का प्रयास करें, तो आदमी बोलने में सफल हो सकता है। संस्कृत भाषा आदिभाषा है और सब भाषाओं की जननी है। संस्कृत भाषा नष्ट नहीं हो सकती। कुछ लोग कहते हं संस्कृत मृतभाषा है, लेकिन यह अमर भाषा है ।



आज के समय मे नयी पीढी तो ये कहने मे जरा भी गुरेज नही करती की मेरी हिन्दी अच्छी नही है अत: मै अंग्रेजी मे ही बात करने या कहने को प्राथमिकता दूंगा। महात्मा गाँधी ने कहा थाकी अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिये ऐसी भाषा की आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता समझता है। मगर आज जितना प्रयास हिन्दी को बचाने के लिए किया जा रहा है, उससे कही ज्यादा जोर अंग्रेजी को बढाने के लिए हो रहा है । तो क्या अब ये मान लिया जाए की बिना अंग्रेजी बोले हम पूर्ण भारतीये नही कहे जा सकते ?ये बात अंग्रेजी का विरोध करने के लिए नही कह रहा हूं, बल्कि मेरी ये बात तो हिन्दी के उपर अंग्रेजी को प्राथमिकता देने पर केन्द्रीत है । आज हिन्दी बोलने वाले को निकृष्ट और अंग्रेजी बोलने वाले को उत्कृष्ट समझे जाने पर है । आज हमारा देश बदल तो बहुत गया है मगर इस बदलाव ने हमारी मूल पहचान को भी बदल कर रख दिया है । जो देश मानव-भाषा की जननी कही जाती है, आज उसी देश की भाषा को लिखने और बोलने मे, उसी देश के लोग अगर परहेज करने लगे तो फिर इससे बडा सांस्कारिक पतन और क्या कहा जा सकता है ! आज अगर आप प्रवाहिक अंग्रेजी या फिर कामचलाऊ अंग्रेजी भी बोल सकते है तो आप नि:संदेह किसी अच्छे जगह पर नौकरी पाने के ज्यादा हकदार बन जाते है, उन लोगो के बनिस्पत जो बहुत अच्छी हिन्दी लिख और बोल दोनो सकते है ।



सरलता, बोधगम्यता और शैली की दृष्टि से विश्व की भाषाओं में हिन्दी महानतम स्थान रखती है। आज उस महान हिन्दी रूपी बिन्दी को सर से उतारने पर तुले हम भारतीयों को एक बार रूक कर ये देखना पडेगा कि हमारा ये कृत्य हमारी आने वाले पीढी को क्या देकर जाएगा । कही ऐसा ना हो की आने वाली पीढी अपनी राष्ट्र भाषाई निर्धनता के लिए हमे कभी माफ ना करे । अनेकता मे एकता का मंत्र को प्रतिपादित करने और हमारे देश को एकजुट बनाए रखने मे राष्ट्रभाषा से बडा योगदान न पहले किसी का थाऔर न आगे किसी का होगा ।



अत: अपनी राष्ट्रभाषा पर हमे गर्व होना चाहिए । इसे अपनाने और हर जगह प्रयोग मे लाने से ही हम अपनी महान सांस्कृतिक विरासत को बचा सकते है ।



देशोन्नति के लिये हिंदी भाषा को पहले भी अपनाया गया था और भविष्य मे भी इसे बरकरार रखने की आवश्यक्ता है । जो भाषा जन्म से ही अपने पैरों पर खडी मानी गई है जरुरत है उसे अपने साथ लेकर चलने की क्यूंकी इसी से हम अपने चिर काल से विकसित संस्कारों की छ्टा पूरी दुनिया मे बिखेर सकते है।



"हिन्दी का गौरव शाली पक्ष":--



राष्ट्रभाषा के रूप में हुई थी यहां, स्थापित हिन्दी निष्पक्ष।



संस्कृत है इसकी जननी, संस्कार पाणिनी के हैं।



रामायण, वेदों से जुड़ते शब्द, इसी में मिलते हैं।



सूर, तुलसी, कबीर, रहीम इसमें सभी समाए हैं।



मीरा,रसखान आदि ने, इसके गुण गाए हैं।



मैथिली, सुमित्रा, दिनकर ने, इस भाषा को तराशा।



प्रेमचंद, सुभद्रा, महादेवी ने, इस भाषा को नक्काशा।



रस,छ्न्द,अलंकार हैं, इसमें पिरोए हुए।



अस्मिता और गरिमा को, स्वयं में संजोए हुए।



आती है हर बरस, बधाई हमें देते हुए।



भारत माता का आंचल दूध में भिगोते हुए।



हिन्दी ने हर भाषा को, प्रेम से अपनाया है।



जग में अपना स्थान, स्वयं कमाया है।



इसकी महिमा का हम, कितना बखान करें।



आओ एक साथ मिलकर, हिन्दी में ज्ञान दान करें।



हिन्दी हमेशा उन्नत रहे फले फूले और हिन्दुस्तानियों के सर पर बिन्दी बन चमकती रहे की आशा के साथ............



सादर,



आपका स्नेहाकांक्षी.



--डॉ.मनोज चतुर्वेदी



“जय हिंद ,जय हिंद


“मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती । भगवान भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती ”
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 Comments:

Bishwa Nath Singh :

It 's a hard core fact indeed Hindi has been derived from Sanskrit .Hence, Sanskrit is known as the mother of Hindi language as whole.None can deny that Hindi is not our national language and as why we should not popularize it. We do love Hindi, admire Hindi and speak Hindi very well but because of several constraints, we can't communicate each other in Hindi though wished to do so. We don't have apathy for Hindi as we consider it to be most interesting language but not at the cost of English as it is an international recognized language that cements people from one continent to another & vice-versa. One can’t popularize Hindi by mere slogan raising rather the publishers and authors who publish & write boos respectively in Hindi have to be persuaded to go for cheap publication and use simple words so that Hindi literature could be popular amongst masses. It becomes solemn duty of our Union Govt. & all State Govts. to come forward and encourage cheap publication of our epics and other books in Hindi so that it could be popular. Hind Divas is celebrated only with intention as how best we could popularize it. Let leading authors, journalist, Academicians, publishers should sit round across a round table and discuss ways and means as how best Hindi could be encouraged in our country. Leading authors & publishers must be selected on their merit by Union Govt. & all State Govts. and National award /State award be given every year to encourage others to take up this work sincerely & honestly. Leading authors & publishers must be selected on their merits by Union Govt. & all State Govts. for National award /State award to be given to them every year to encourage others to take up this work sincerely & honestly. Let us examine as why Hindi is not so popular in our country! Firstly, India is a mufti-linguistic country having well-recognized twenty two more languages besides Hindi as duly accepted by our constitution in our country .Besides them, over one hundred more languages that people speak and converse in our country. We have one lakh twenty thousand Hindi words where English has ten lakh words. Truly speaking, we are synchronizing Hindi after independence. Before independence two organizations such as NagriK Pracharni Sabha & Hindi Sahitya Sammelan had done excellent jobs in propagating Hindi .Now almost those organizations are in decaying stage because of apathy of our Govts.. The great stalwarts like Pandit Madan Mohan Malviya, Mahatma Gandhi,P.D.Tondon,,Seth Govind Das,Premchand & many others who were very prominent persons and great scholars had presided over Hindi Sahitaya Sammelan. Such personalities are rarely seen now presiding over any such meeting connected with extension of Hindi. It is a fact that job guarantee is at the lowest ebb to carry our livelihoods & meet personal expanses to our Hindi writers & Poets or who nurse Hindi for his/her career. Let us not forget that before we attained Independences on the 15th of August 1947,we were under British colonial rule for over a couple of centuries where English was taken as language of pride to converse and that old legacy, still we are carrying and that is why every Parentage feel like their children going in convent to be well-versed with English that none can deny. The only consolation we can have that now percentage of youths appearing in All India Civil Services Exams. Conducted by UPSC using Hindi as their medium for their exams . have gone up in recent years from seven percent that was in 2005 to twenty percent recently. Even the Selection board has started encouraging examinees to use Hindi as their medium since it is our Rashtra Bhasha. Why should we look at dark side of it? Hindi has a great future not only in our country but even in abroad as NRI have been using their mother tongues for their conversation amongst themselves and follow all rituals there to Keep their old values(”Sanskar”) & traditions alive.
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.Manoj Chaturvedi ‎*:

प्रियभाई बिश्वनाथ सिंह,

आपने हिंदी-भाषा के उद्गम और वर्तमान स्थिति का विषद सारगर्भित समीक्षात्मक वक्तव्य से प्रभावित किया है, साधुवाद....

भारत की सब भाषाओं की जननी संस्कृत है। हर भाषा में 50 से 75 प्रतिशत शब्द संस्कृत के ही हैं। हम दिन भर... अधिकांश संस्कृत शब्द ही प्रयोग करते हैं। विजय, अजय, सुरेश, रमेश, पंकज, आनंद, नूपुर, मेघा, वंदना आदि नाम और जल, वायु, आकाश, अग्नि आदि संस्कृत शब्द ही हैं। पूजा और आरती आदि में भी हम संस्कृत मंत्रों का प्रयोग करते हैं। देवनागरी लिपि के कारण संस्कृत को पढ़ना भी आसान है।जैसे माता-पिता की समृद्धि से उनके बच्चों को लाभ होता है, ऐसे ही हिन्दू धर्म, हिन्दू जाति, हिन्दी, संस्कृत तथा भारतीय भाषाओं की समृद्धि से अन्ततः भारत ही सबल होगा।

"जय हिंद ,जय हिंदी”
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f.b.
Nov.7,2010.


 

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