आप मानो या न मानो…".by Vijay Chauhan on Sunday, November 14, 2010 at 11:49am.
आप मानो या न मानो मगर “जातिवाद” तो “हिंदूवाद” की जान है...!! खुद को हिन्दु माननेवाले को ये अच्छा लगे या बुरा लगे, मगर यह वास्तविकता है की, जो खुद को हिंदूवादी मानता है, वो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जातिवादी होता ही है...!!! भूतकाल में कुछ विद्वानो ने “जातिवाद” का समर्थन भी किया था और कुछ विद्वानों ने “जातिवाद” का विरोध भी किया था. आज वर्तमान समय में भी यह प्रक्रिया चालू ही है...!!!स्वाध्याय परिवार के प्रणेता पांडुरंग आठवलेजी ने भी अपने पुस्तक “विजिगीषु जीवनवाद” में हिंदू प्रजा के हित की चिंता करते हुए लिखा है की , हिंदू प्रजा के पतन का मुख्य चार कारण है, - (१) ब्राह्मणवाद, (२) पुराणों का प्राबल्य ,(३) स्त्री-शिक्षा का अभाव , (४) वंश परंपरा में मिलती गुरुगादी...तो, मित्रो आठवलेजी ने “ब्राह्मणवाद” को हिंदू प्रजा के पतन का मुख्य कारण बताया है. मुझे आश्चर्य इस बात का होता है की हिंदुत्व की चर्चा करनेवाले ज्यातर ब्राह्मण समुदाय के लोग ही होते है.. और दुःख इस बात का होता है की वो लोग कभी भी आठवलेजी की तरह निष्ठापूर्वक ब्राह्मणवाद को कथित हिन्दुओ के पतन का मूल कारण बताते ही नहीं... सभी लोग जानते है की हिन्दुओ में ब्राह्मणों की आबादी करीब 3% ही है.. अभी 97% बिनब्राह्मणों को भी इस बात पर ध्यान से सोचने की खास जरुरत है...हिंदूओ के हित की चिंता करनेवाले लोगो को पहले हिंदू शब्द की व्युत्पत्ति की जानकारी होना खास जरुरी है... पहले यह जानना जरुरी है की, आर्य समाज के हिमायती और वेदों के प्रखर विद्वान महर्षि दयानंद सरस्वति ने “हिंदू” शब्द का स्वीकार क्यों नहीं किया...?!! और अगर नहीं स्वीकार किया तो क्या कारण थे...? किस प्राचीन व पौराणिक शास्त्र में “हिंदू” शब्द का उल्लेख है...??
सिंधु का हिंदू हुवा है...!! ऐसी दलील के अलावा और कोई ठोस सबूत लोगो के पास है ही नहीं... अरे, “स” और “ह” का भेद तो प्राचीन ग्रंथो में तो नजर आता ही है. तो फिर कोई कैसे माने की सिंधु का हिंदू हुवा होंगा...? वास्तविकता यह है की “हिंदू” एक अपमानजनक अर्थ वाला फारसी भाषा का विदेशी शब्द है.हमारे देश के जानेमाने धार्मिक व राजकीय आगेवानो और शिक्षणविदो – साहित्यकारो की क्या यह फर्ज नहीं बनाती की, भारत देश की 83% आबादी को कोई नया सन्मानजनक शब्द मिले ऐसा कोई काम करे..
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Bishwa Nath Singh It is such a serious topic that requires extensive research on its genesis by great scholars before one could come to certain findings.
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f.b.
Nov.14,2010.
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