Sunday, December 19, 2010

A Poem in Hindi "Deo Bhumi" by Alka Saini along with my comment is flashed on the f.b. on Dec.20,2010.

http://alkasainipoems-stories.blogspot.com/2010/12/blog-post_19.html?spref=fb

by Alka Saini on Monday, December 20, 2010


" देव- भूमि"


इस गर्मी की छुट्टी हम चले पहाड़ों की सैर

ऐसा लगा मानो पहाड़ों पर बादल रहे तैर

आने लगे ठंडी- ठंडी हवा के झोंके

ए.सी. , कूलर भी हैं जिसके आगे फींके

हिमाचल जो कहलाए धरती पर " देवभूमि"

मैदानों पर पड़ रही होती जब भीष्म गर्मी

हर मोड़ पर लगा है संकेतक साइन बोर्ड

देकर चलो हार्न ,आगे है तीव्र मोड़

इक तरफ ऊँचे पहाड़ तो इक तरफ गहरी खाई

किसे ना मनमोहक पहाड़ी झरनों की छटा भाई

दूर इक पहाड़ी पर चरवाहा था भेड़ें चराए

हैरान हूँ बिन सीड़ी ,रास्ते कैसे वहाँ चढ़ जाए

घुमावदार सड़कों पर सर खा ना जाए चक्कर

ओवर टेक ना करो तंग सड़क पर हो ना जाए टक्कर

छोटी सी पहाड़ी पर इक था छोटा सा शिवालय

कोहरे के आलिंगन में था पर्वत हिमालय

बर्फ से ढकी ऊँची चोटियाँ नव दुल्हन की तरह निर्मल

पर्वत मालाएं हैं देवताओं के वास से उज्जवल

कहीं हैं बांस के वृक्ष तो कहीं लम्बे- लम्बे देवदार

इक पल में धूप खिले तो इक पल में बरखा की मनुहार

कानों में रस घोल रही पक्षियों की आवाजें मनमोहक

बसेरों की रोशनी लगे मानों तारें रहे हो चमक

यहीं पर दिखता धरती -गगन के मिलन का अद्दभुत नजारा

जहाँ सूरज की पहली किरण से फ़ैल रहा नव सवेरा

मन चाहे कि बना ले हमेशा का यहीं इक आशियाना

कुदरत ने मानों यहीं बिखेरा अपना सारा खजाना

इस गर्मी की छुट्टी हम चले " देव भूमि"

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(Picture of mountain with lake)

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Bishwa Nath Singh :
It's an awesome thought on natural habitats that is very well composed. It is worth appreciating. Alka Ji writes very well and has composed many good Poems and that is why she is known widely for her wisdom & literary pursuit. She has tried her best in this Poem to project nature & its surroundings in the best possible manner. She deserves all praise & banquets from us. Thanks for sharing.
 
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f.b.
Dec.20,2010.

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